jivit
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शव सा जीवन मैं क्यो जिया
शिव को करू प्रसन्न
चंद्र धरा सिर मस्तक ऊपर
गंगा जटिल जटाओ मे
भस्म रमा मस्ती मे घूमे हिमालय की श्रंखलाओ मे ।।
भांग चढा नाचे नन्दी संग
मगन शिव-गण डमरू बजाए
भूतो संग शमशान मे बैठा मेरा भोला धुनी रमाए ।।
काशी लागे प्रिय भोले को
हरि का द्वार मन को भाए
हरिद्वार मे बैठा मेरा भोला पल -पल ध्यान लगाए ।।
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